BA Semester-5 Paper-2B History - Socio and Economic History of Medieval India (1200 A.D-1700 A.D) - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.)

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :144
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2788
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2B इतिहास - मध्यकालीन एवं आधुनिक सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास (1200 ई.-1700 ई.) - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।

अथवा
"गोस्वामी तुलसीदास ने अपने काव्य में समन्वय साधना का जो रूप प्रस्तुत किया है वह अप्रतिम है।" वह स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"तुलसी का समस्त काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।' इस कथन की संगति पर सतर्क विचार कीजिए।
अथवा
तुलसीदास की समन्वय भावना को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

मानवतावादी विचारधारा लोकनायक तुलसीदास के साहित्य का अध्ययन करने के पश्चात् यही कह सकते हैं कि उन्होंने मानव की समस्त गतिविधियों का अपने काव्य में समन्वय किया है। उनका साहित्य 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' की सफल अभिव्यक्ति है। तुलसीदास ने अपने समय की समस्त दशाओं का बहुत गहन अध्ययन करके अपने साहित्य के माध्यम से समाधान प्रस्तुत किया। कवित्व की दृष्टि से तुलसी की प्रांजलता, माधुर्य और ओज, अनुपम कथा, मानव जीवन का सर्वांग निरूपण अप्रतिम हुआ। मर्यादा और संयम की साधना में गोस्वामी जी संसार के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। 'रामचरितमानस' में मर्यादावाद की जैसी सुन्दर पुष्टि, गुरु की अवहेलना के लिए शिष्य को दण्डित कराके की है, राम-राज्य का वर्णन करके जो उदात्त आदर्श रखा है उसमें और ऐसे ही अनेक प्रसंगों में गोस्वामी जी की मनुष्य समाज के प्रति हित-कामना स्पष्टतः झलकती देखी जाती है। उनके अमर-काव्य में मानवता के चिरंचन आदर्श भरे पड़े हैं।

धार्मिक क्षेत्र में समन्वय - तुलसी केवल केशव की तरह एक कवि ही नहीं थे। उन्हें मानव जीवन की सभी दशाओं का ज्ञान था। वे मानवतावादी कवि थे। धर्म मानव-जीवन की एक अमूल्य वस्तु है। तुलसीदास ने सबसे पहले धार्मिक सम्प्रदाओं में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया। 

दार्शनिक विचारों में समन्वय - तुलसीदास के विचारों में अद्वैतवाद और विशिष्टाद्वैतवाद का समन्वय मिलता है

"कोउ कह सत्य झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल को मानै।
तुलसिदास परिहरै तीन भ्रम, सो आपुन पहिचानै।'

इसके द्वारा तुलसी ने दार्शनिक विद्वेष एवं वैमनस्य को दूर किया। तुलसी ने भी विशिष्टाद्वैत वादियों की भाँति संसार को नित्य शाश्वत एवं अविवासी घोषित किया है, परन्तु 'विनय पत्रिका' में आकर तुलसी शंकर के अनुसार ही ब्रह्मा को अज, स्वतन्त्र, सर्वत्र सत्य आदि कहा है, जीव एवं जगत को सर्वाधिक एवं मिथ्या बताया है तथा माया का निरूपण भी शंकर की ही भाँति किया है। इस तरह तुलसी के विचारों में अद्वैतवाद और विसिष्टाद्वैतवाद का भी समन्वय मिलता है।

सामाजिक क्षेत्र में समन्वय - तुलसी ने जीवन के किसी भी क्षेत्र को बिना समन्वय के छोड़ा नहीं है। डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना ने 'समन्वय भावना' वाले लेख में लिखा है- 'तुलसी एक उच्च कोटि के समन्वयवादी कवि थे। उन्होंने जीवन और जगत से सभी क्षेत्रों में समन्वय करने का स्तुत्य प्रयत्न किया। तुलसी के काल में राजा और प्रजा के बीच गहरी खाई बनती जा रही थी। राजा प्रजा से कहीं अधिक श्रेष्ठ, उन्नत एवं महान समझा जाता था और ईश्वर का रूप माना जाता था। तुलसी ने 'रामचरितमानस' में राजा और प्रजा के कर्तव्यों का निर्धारण करते हुए दोनों के सम्यक रूप की व्यवस्था की और बताया कि 'सेवक कर, दद, नयन से मुख सो साहिब'। अर्थात राजा को मुख के समान और प्रजा को कर, पद एवं नेत्रों के समान जारा का हितैषी होना चाहिए। इतना ही नहीं -

"मुखिया मुख सो चाहिए, खान-पान कहुँ एक।
पालइ पोषइ सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।'

तुलसी ने राजा को मुख के तुल्य बताते हुए अपनी प्रजा के पालन-पोषण के लिए ही वस्तुओं का संग्रह करने वाला कहा है। नर एवं नारायण का समन्वय तुलसी ने 'भये प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी' कहकर उन्हीं ब्रह्मा को कौशल्या - पुत्र या दशरथ सुत के रूप में अवतरित दिखाकर अपने इष्टदेव को साधारण मानव या नर से ऊपर उठाते हुए नारायण के ब्रह्म पद पर आसीन कर दिया है। इस प्रकार तुलसी ने राम के रूप में नर और नारायण का अथवा मानव और ब्रह्म का. सुन्दर समन्वय किया है।

पारिवारिक क्षेत्र में समन्वय - तुलसी ने धर्म एवं समाज के क्षेत्र में ही समन्वय स्थापित नहीं किया है। अपितु पारिवारिक क्षेत्र के अन्तर्गत पिता और पुत्र में पति-पत्नी में, सास और पुत्र- वधु में, भाई-भाई में, स्वामी और अनुचर में तथा पत्नी सपत्नी में समन्वय स्थापित किया है। इसी कारण तुलसी के राम पिता के जितने भक्त हैं, उतने ही वे माताओं के भी भक्त हैं और माता-पिता भी राम के उतने ही भक्त हैं। इस प्रकार तुलसी ने पारिवारिक जीवन में समन्वय स्थापित करते हुए एक आदर्श परिवार की प्रतिष्ठा की है।

भाग्य और पुरुषार्थ में समन्वय - तुलसीदास एक महान कलाकार थे। उन्होंने भाग्यवाद और पुरुषार्थवाद में समन्वय स्थापित किया। पुरुषार्थवाद के विषय में उनका विचार था -

"करम प्रधान विश्व करि राखा। जो जस करइ सो तस फल चाखा।"

भाग्यवाद के विषय में तुलसीदास का विचार है-

"तुलसी जसि भवितव्यता तैसी मिले सहाइ।'

उनके समन्वयवाद का रूप यह है-

"सुभ अरू असुभ करम अनुहारी। ईस देह फल हृदय विचारी।"
करइ जो करम पाय फल सोई। निगम नीति असि कह सब कोई।"

साहित्य क्षेत्र में समन्वय - गोस्वामी तुलसीदास ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मं  समन्वय स्थापित किया है। मानव जीवन का कोई ऐसा अंग अछूता नहीं रहा, जिस पर उन्होंने विचार नहीं किया हो। इसी प्रकार उन्होंने अपनी लेखनी के चमत्कार के लिए साहित्यिक क्षेत्र में भी समन्वय किया है।

मानव संस्कृति में समन्वय - तुलसी के समस्त साहित्य का अध्ययन करने के पश्चात् कह सकते हैं कि विश्व में जितने भी मानव हैं, उनकी संस्कृति और सभ्यता हैं। उन सबका सुन्दर समन्वय हिन्दुओं के एकमात्र ग्रन्थ 'रामचरितमानस' में है, जिसमें सब कुछ अध्ययन किया जा सकता है।

राम-काज्य धारा और कृष्ण-काव्य धारा में समन्वय - तुलसीदास के साहित्य में एक नहीं अनेक ऐसी अद्भुत वस्तुएँ मिलती हैं, जिसका समन्वय करके उन्होंने संसार का बड़ा उपकार किया है। इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि तुलसी स्वयं रामकाव्य धारा के प्रतिनिधि कवि थे, फिर भी कृष्ण के चरित्र को लेकर उन्होंने 'कृष्ण गीतावली' की रचना की। संक्षेप में तुलसी का समस्त जीवन और काव्य समन्वय का ही रूप हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सल्तनतकालीन सामाजिक-आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- सल्तनतकालीन केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में प्रांतीय शासन प्रणाली का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- सल्तनत के सैन्य-संगठन पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत काल में उलेमा वर्ग की समीक्षा कीजिए।
  7. प्रश्न- सल्तनतकाल में सुल्तान व खलीफा वर्ग के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।
  8. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- मुस्लिम राजवंशों के द्रुतगति से परिवर्तन के कारणों की व्याख्या कीजिए।
  10. प्रश्न- सल्तनतकालीन राजतंत्र की विचारधारा स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के स्वरूप की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- सल्तनत काल में 'दीवाने विजारत' की स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- सल्तनत कालीन राजदरबार एवं महल के प्रबन्ध पर एक लघु लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- 'अमीरे हाजिब' कौन था? इसकी पदस्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
  15. प्रश्न- जजिया और जकात नामक कर क्या थे?
  16. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में राज्य की आय के प्रमुख स्रोत क्या थे?
  17. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन भू-राजस्व व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत में सुल्तान की पदस्थिति स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- दिल्ली सल्तनतकालीन न्याय-व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- 'उलेमा वर्ग' पर एक टिपणी लिखिए।
  21. प्रश्न- दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों में सल्तनत का विशाल साम्राज्य तथा मुहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक की दुर्बल नीतियाँ प्रमुख थीं। स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- विदेशी आक्रमण और केन्द्रीय शक्ति की दुर्बलता दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण बनी। व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- अलाउद्दीन की प्रारम्भिक कठिनाइयाँ क्या थीं? अलाउद्दीन के प्रारम्भिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि उसने इन कठिनाइयों से किस प्रकार निजात पाई?
  24. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार व बाजार नियंत्रण नीति का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का विवरण दीजिए। उसकी दक्षिणी विजय की सफलता के क्या कारण थे?
  26. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  27. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- 'खिलजी क्रांति' से क्या समझते हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अलाउद्दीन की दक्षिण नीति के क्या उद्देश्य थे, क्या वह उनकी पूर्ति में सफल रहा?
  30. प्रश्न- खिलजी शासकों के काल में स्थापन्न कला के विकास पर टिपणी लिखिए।
  31. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का एक वीर सैनिक व कुशल सेनानायक के रूप में मूल्याँकन कीजिए।
  32. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की मंगोल नीति की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  33. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजनीति क्या थी?
  34. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  35. प्रश्न- अलाउद्दीन की हिन्दुओं के प्रति नीति स्पष्ट करते हुए तत्कालीन हिन्दू समाज की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व सुधार नीति के विषय में बताइए।
  37. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी का प्रारम्भिक विजय का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की महत्त्वाकांक्षाओं को बताइये।
  39. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का लाभ-हानि के आधार पर विवेचन कीजिये।
  40. प्रश्न- अलाउद्दीन खिलजी की हिन्दुओं के प्रति नीति का वर्णन कीजिये।
  41. प्रश्न- सूफी विचारधारा क्या है? इसकी प्रमुख शाखाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके भारत में विकास का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों, विशेषताओं और मध्यकालीन भारतीय समाज पर प्रभाव का मूल्याँकन कीजिए।
  43. प्रश्न- मध्यकालीन भारत के सन्दर्भ में भक्ति आन्दोलन को बतलाइये।
  44. प्रश्न- समाज की प्रत्येक बुराई का जीवन्त विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है। विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  46. प्रश्न- “मध्यकालीन युग में जन्मी, मीरा ने काव्य और भक्ति दोनों को नये आयाम दिये" कथन की समीक्षा कीजिये।
  47. प्रश्न- सूफी धर्म का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा।
  48. प्रश्न- राष्ट्रीय संगठन की भावना को जागृत करने में सूफी संतों का महत्त्वपूर्ण योगदान है? विश्लेषण कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी मत की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के प्रभाव व परिणामों की विवेचना कीजिए।
  51. प्रश्न- भक्ति साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
  53. प्रश्न- भक्ति एवं सूफी सन्तों ने किस प्रकार सामाजिक एकता में योगदान दिया?
  54. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के कारण बताइए
  55. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की क्या दशा थी? इस काल की एकमात्र शासिका रजिया सुल्ताना के विषय में बताइये।
  56. प्रश्न- "डोमिगो पेस" द्वारा चित्रित मध्यकाल भारत के विषय में बताइये।
  57. प्रश्न- "मध्ययुग एक तरफ महिलाओं के अधिकारों का पूर्णतया हनन का युग था, वहीं दूसरी ओर कई महिलाओं ने इसी युग में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करायी" कथन की विवेचना कीजिये।
  58. प्रश्न- मुस्लिम काल की शिक्षा व्यवस्था का अवलोकन कीजिये।
  59. प्रश्न- नूरजहाँ के जीवन चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसकी जहाँगीर की गृह व विदेशी नीति के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- सल्तनत काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
  61. प्रश्न- 1200-1750 के मध्य महिलाओं की स्थिति को बताइये।
  62. प्रश्न- "देवदासी प्रथा" क्या है? व इसका स्वरूप क्या था?
  63. प्रश्न- रजिया के उत्थान और पतन पर एक टिपणी लिखिए।
  64. प्रश्न- मीराबाई पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- रजिया सुल्तान की कठिनाइयों को बताइये?
  66. प्रश्न- रजिया सुल्तान का शासक के रूप में मूल्यांकन कीजिए।
  67. प्रश्न- अक्का महादेवी का वस्त्रों को त्याग देने से क्या आशय था?
  68. प्रश्न- रजिया सुल्तान की प्रशासनिक नीतियों का वर्णन कीजिये?
  69. प्रश्न- मुगलकालीन आइन-ए-दहशाला प्रणाली को विस्तार से समझाइए।
  70. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व का निर्धारण किस प्रकार किया जाता था? विस्तार से समीक्षा कीजिए।
  71. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व वसूली की दर का किस अनुपात में वसूली जाती थी? ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर क्षेत्रवार मूल्यांकन कीजिए।
  72. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व प्रशासन का कालक्रम विस्तार से समझाइए।
  73. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व के अतिरिक्त लागू अन्य करों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान मराठा शासन में राजस्व व्यवस्था की समीक्षा कीजिए।
  75. प्रश्न- शेरशाह की भू-राजस्व प्रणाली का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  76. प्रश्न- मुगल शासन में कृषि संसाधन का वर्णन करते हुए करारोपण के तरीके को समझाइए।
  77. प्रश्न- मुगल शासन के दौरान खुदकाश्त और पाहीकाश्त किसानों के बीच भेद कीजिए।
  78. प्रश्न- मुगलकाल में भूमि अनुदान प्रणाली को समझाइए।
  79. प्रश्न- मुगलकाल में जमींदार के अधिकार और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मुगलकाल में फसलों के प्रकार और आयात-निर्यात पर एक टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- अकबर के भूमि सुधार के क्या प्रभाव हुए? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- मुगलकाल में भू-राजस्व में राहत और रियायतें विषय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  83. प्रश्न- मुगलों के अधीन हुए भारत में विदेशी व्यापार के विस्तार पर एक निबंध लिखिए।
  84. प्रश्न- मुग़ल काल में आंतरिक व्यापार की स्थिति का विस्तृत विश्लेषण कीजिए।
  85. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापारिक मार्गों और यातायात के लिए अपनाए जाने वाले साधनों का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- मुगलकाल में व्यापारी और महाजन की स्थितियों का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- 18वीं शताब्दी में मुगल शासकों का यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  88. प्रश्न- मुगलकालीन तटवर्ती और विदेशी व्यापार का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  89. प्रश्न- मुगलकाल में मध्य वर्ग की स्थिति का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  90. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार के प्रति प्रशासन के दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  91. प्रश्न- मुगलकालीन व्यापार में दलालों की स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  92. प्रश्न- मुगलकालीन भारत की मुद्रा व्यवस्था पर एक विस्तृत लेख लिखिए।
  93. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान बैंकिंग प्रणाली के विकास और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली हुण्डी व्यवस्था को समझाइए।
  95. प्रश्न- मुगलकालीन मुद्रा प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  96. प्रश्न- मुगलकाल में बैंकिंग और बीमा पर प्रकाश डालिये।
  97. प्रश्न- मुगलकाल में सूदखोरी और ब्याज की दर का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  98. प्रश्न- मुगलकालीन औद्योगिक विकास में कारखानों की भूमिका का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  99. प्रश्न- औरंगजेब के समय में उद्योगों के विकास की रूपरेखा का वर्णन कीजिए।
  100. प्रश्न- मुगलकाल में उद्योगों के विकास के लिए नियुक्त किए गए अधिकारियों के पद और कार्यों का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- मुगलकाल के दौरान कारीगरों की आर्थिक स्थिति का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- 18वीं सदी के पूर्वार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रवृत्ति की व्याख्या कीजिए।
  103. प्रश्न- मुगलकालीन कारखानों का जनसामान्य के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
  104. प्रश्न- यूरोपियन इतिहासकारों के नजरिए से मुगलकालीन कारीगरों की स्थिति प

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